*दैनिक मूक पत्रिका रायपुर* — सनातन धर्म में ऋषि पंचमी का विशेष महत्व है। ऋषिपंचमी का त्यौहार हिन्दू पंचांग के भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी यानि आज ही के दिन मनाया जाता है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है। आज के दिन महिलायें सप्तऋषियों के सम्मान में , उनका आशीर्वाद प्राप्त करने तथा रजस्वला दोष से शुद्धि एवं अन्य दोषों के निवारण के लिये श्रद्धा व भक्ति के साथ उपवास रखती हैं। मान्यता के अनुसार ऋषि पंचमी पर अपने पितरों के नाम से दान करने से रुके हुये कामों में सफलता मिलती है। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस दिन चारों वर्ण की स्त्रियों को यह व्रत करना चाहिये इसके व्रत रखने से व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है और जीवन में हुये सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा , कृतज्ञता , समर्पण और सम्मान की भावना को दर्शाता है। यह व्रत रखना बहुत ही फलदायी होता है। ऐसा माना जाता है कि ऋषि पंचमी का व्रत करने से अगर किसी महिला से रजस्वला (महामारी) के दौरान अगर कोई भूल हो जाती है , तो इस व्रत को करने उस भूल के दोष को समाप्त किया जा सकता है।
“कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय:स्मृता:।।” इस श्लोक के अनुसार यह व्रत समाज के उत्थान और कल्याण के लिये योगदान देने वाले कश्यप , अत्रि ,भारद्वाज , विश्वामित्र , गौतम , जमदग्नि और वशिष्ठ इन सप्त ऋषियों को समर्पित है। आज के दिन महिलायें सरोवर या नदी में स्नान करती हैं। ऋषि पंचमी की पूजा में महिलायें सप्त ऋषियों की मूर्ति बनाती हैं और उसकी पूजा करती हैं , इसमें प्रथम पूज्य श्री गणेशजी की पूजा भी की जाती है। इस दिन जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिये क्षमा मांगकर सप्त ऋषियों के लिये व्रत करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है , उसके बाद ऋषि पंचमी की कथा सुनती हैं। ऋषि पंचमी के व्रत में महिलायें फलाहार करती हैं और अन्य व्रत के नियमों का पालन करती हैं। इस व्रत में दिन में एक बार भोजन करने की परंपरा है। अन्य व्रत की तरह ही इस व्रत को महिलाओं के साथ-साथ कुंँवारी कन्यायें भी रख सकती हैं। ज्योतिष के अनुसार ऋषि पंचमी का व्रत मुख्य रूप से जाने-अनजाने में किये गये पापों से मुक्ति दिलाता है। विधि-विधान के अनुसार व्रत पूर्ण करने से तीर्थ भ्रमण का पुण्य , सुख , सौभाग्य , पुत्र-पौत्र का सुख प्राप्त होता है साथ ही व्रती अंत काल में अक्षय गति का प्राप्त करता है। इस उपवास की एक रोचक बात यह है कि इस व्रत में किसी भी देवी-देवता का पूजन नहीं किया जाता है। बल्कि देवी-देवताओं के स्थान पर इस दिन महिलायें सप्तऋषियों की पूजा करती हैं। इसी कारण से इस व्रत को ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत महिलाओं के लिये अटल सौभाग्यवती व्रत माना जाता है। इस दिन अकृष्ट भूमि ( बिना जुताई वाली भूमि) से उत्पन्न फल आदि का शाकाहारी भोजन करने की परंपरा है।
*ऋषि पंचमी की प्रचलित कथा*
ऋषि पंचमी की प्रचलित कथा के अनुसार काफी समय पहले एक ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहते थे , उनके परिवार में पत्नी , बेटा और एक बेटी थीं। ब्राह्मण ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे ब्राह्मण कुल में किया लेकिन दुर्भाग्यवश उनके दामाद की अकाल मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसकी विधवा बेटी अपने घर वापस आकर रहने लगी। एक दिन मध्यरात्रि में उनकी बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे जिसके बाद वो ब्राह्मण अपनी बेटी को एक ऋषि के पास ले गये।ऋषि ने बताया कि ब्राह्मण की बेटी पिछले जन्म में ब्राह्मणी थी और एक बार उसने रजस्वला होने पर भी घर का काम किया था इसी के चलते उसके शरीर में कीड़े पड़ गये हैं। शास्त्रों में रजस्वला स्त्री का काम करना वर्जित है लेकिन ब्राह्मण की बेटी ने इसका पालन नहीं किया जिसके कारण इस जन्म में उसे दंड भोगना पड़ रहा है। ऋषि ने आगे कहा कि अगर ब्राह्मण की बेटी श्रद्धा भाव से अगर ऋषि पंचमी का पूजा-व्रत कर भगवान से क्षमा मांँगेगी तो उसे पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिल जायेगी। कन्या ने ऋषि के कहे अनुसार विधिविधान से पूजा और व्रत किया जिसके बाद उस पर कृपा हुई उसके पूर्वजन्म के पापों से छुटकारा मिला और अगले जन्म में सौभाग्य की प्राप्ति हुई। इस प्रकार ऋषि पंचमी का व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है।