चक्रधर समारोह में कत्थक कला में जया दीवान ने बांधा समां
दैनिक मूक पत्रिका रायगढ़ – कला की नगरी सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ में छग शासन सांस्कृतिक विभाग पर्यटन एवं जन सहयोग से जिला प्रशासन रायगढ़ द्वारा गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर इस वर्ष 07 सितम्बर से 16 सितम्बर तक रामलीला मैदान में आयोजित दसदिवसीय 39 वां चक्रधर समारोह में रायगढ़ की बेटी कुमारी जया दीवान को भी समारोह के तीसरे दिन 09 सितम्बर को कत्थक नृत्य प्रस्तुत करने का सौभाग्य मिला। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इन्होंने अपने कत्थक नृत्य की शुरूआत भगवान शिवजी के आराधना और समापन भगवान श्रीकृष्ण की लीला से की , जिसे नृत्य की भाषा में गतभाव भी कहते हैं। इन्होंने तीन ताल पर अपनी खास प्रस्तुति दी , जिसे देखकर दर्शकगण दांतो तले उंगली दबाने मजबूर हो गये। उनके नृत्य ने ऐसा समां बांधा कि दर्शक गण भाव विभोर होकर ताली की गड़गड़ाहट से उनका सम्मान किये। इन्होंने कत्थक कला नृत्य का शानदार प्रदर्शन कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जया ने कत्थक कला नृत्य से शिव आराधना का दृश्य अपनी भाव भंगिमा , अंगों की थिरकन व क्रियाओं से इतना सजीव व जीवंत प्रदर्शन किया कि दर्शक दंग रह गये। कार्यक्रम स्थल का पाण्डाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। प्रस्तुति के समय जया के चेहरे पर आया एक-एक भाव सराहनीय रहा। नृत्य के प्रति उनकी निष्ठा व समर्पण वास्तव में प्रशंसनीय है। जया ने कत्थक नृत्य की प्रस्तुति देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस कार्यक्रम में नृत्य का जो अनुपम सौंदर्य दिखाई पड़ा वह वास्तव में अनुकरणीय है। जया ने नृत्य प्रस्तुत करते हुये विभिन्न शास्त्रीय मुद्राओं तथा कलाओ को शिक्षण विधि से स्पष्ट किया। इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण के कल्याणकारी लीलाओं का भी नृत्य के माध्यम से सफल चित्रण किया। कार्यक्रम के समापन पर डिप्टी कलेक्टर रविन्द्र शेल्के और राज्यसभा सांसद देवेन्द्र प्रताप सिंह ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जया दीवान को मोमेंटो और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया और उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें की। कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात जया दीवान ने संक्षिप्त पत्रकार वार्ता में अरविन्द तिवारी से चर्चा करते हुये कहा कि भारतीय संस्कृति में नृत्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसे भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सभी उन्नत देश अपना रहे है। शास्तीय संगीत व नृत्य में कत्थक कला का विशेष स्थान है। ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो कला को समर्पित होते हैं और ऐसे कलाकारों की कला देखने का अवसर भी बड़े भाग्यशाली लोगों को मिलता है। वे नृत्य कला कत्थक और गायन के क्षेत्र में आगे बड़कर प्रदेश का नाम रोशन करना चाहती हैं। भविष्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि आगे चलकर वे स्वयं एकेडमी खोलने के इच्छुक हँं। वे कहती हैँ कि जिस प्रकार से अभी मु्झे मेरे गुरू आगे बढ़ा रहे हैं , उसी प्रकार से एकेडमी खोलकर मैं भी अपने शिष्यों को आगे बढ़ाऊंगी। अपने कला प्रदर्शन के बारे में इन्होंने बताया कि ये छत्तीसगढ़ के अलावा मुख्य रूप से नागपुर महाराष्ट्र , कटक ओड़िशा , पुरी ओड़िशा , कोलकाता पश्चिम बंगाल , देहरादून उत्तराखण्ड सहित कई राज्यों में कत्थक कला का प्रदर्शन कर धूम मचा चुकी हैं।