नितिन गडकरी करेंगे विश्व के सबसे ऊँचे बैम्बू टॉवर का उद्घाटन और ध्वजारोहण**
आकाश को छूती बांस से अनोखी खोज**
*दैनिक मूक पत्रिका बेमेतरा* – विश्व की पहली बांस की क्रैश बैरियर ‘कूच कवच’ को सफलतापूर्वक विभिन्न स्थानों पर स्थापित करने के बाद, भव्य सृष्टि उद्योग (BSU) के फ़ाउंडर और बांस प्रौद्योगिकी निर्माता गणेश वर्मा ने दुनिया का सबसे ऊँचा बैम्बू टॉवर विकसित किया है। यह टॉवर भूस्तर से 40.20 मीटर ऊँचा है ,और इसकी डिज़ाइन पेरिस के एफिल टॉवर जैसी दिखती है। यह पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में हाईटेंशन बिजली सप्लाई टॉवर, दूरसंचार टॉवर, हाई मास्ट लाइट पोल्स और वॉच टॉवरों के लिए एक क्रांतिकारी समाधान प्रस्तुत करती है। इस बैम्बू टॉवर का उद्घाटन केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी 18 सितम्बर को छत्तीसगढ़ के रायपुर के पास स्थित ग्राम कठीया (बेमेतरा) में करेंगे। यह दिन विश्व बांस दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणेश वर्मा के स्टार्टअप, भव्य सृष्टि उद्योग, का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का निर्माण करना है, विशेष रूप से बांस उद्योग में। इस कंपनी को बांस क्षेत्र में 15 पेटेंट मिल चुके हैं और यह भारत में बांस नवाचार के क्षेत्र में अग्रणी कंपनी है। वर्मा ने बताया, “यह बैम्बू टॉवर वैक्यूम प्रेशर इम्प्रेग्नेशन (VPI) से उपचारित और हाई-डेंसिटी पॉलीएथिलीन (HDPE) से कोटेड बांस से बना है, जिसे बाहु-बल्ली भी कहा जाता है। इसका जीवनकाल 25 वर्षों से अधिक है और इसका वजन हल्का होने के कारण इसे आसानी से स्थानांतरित किया जा सकता है।” कंपनी के फ़ाउंडर एवम मैनेजिंग डायरेक्टर गणेश वर्मा ने कहा, “दुनिया की पहली बांस क्रैश बैरियर के बाद, यह बैम्बू टॉवर एक अद्भुत नवाचार है। इसका निर्माण पर्यावरण के अनुकूल है और यह स्टील की जगह बांस के उपयोग की संभावनाओं को और भी व्यापक करता है।” बाहु-बल्ली के निर्माण के दौरान काफ़ी मात्रा में अनुपयोगी बाँस बच जाता है जिसे BSU अपने स्वयं के द्वारा विकसित बायो चारकोल प्लांट के द्वारा बायो चारकोल बनाने में उपयोग करता है। इस प्रक्रिया में काफ़ी मात्रा में बायोविनेगर और बायोबीटूमीन का उत्पादन भी किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया ज़ीरो वेस्टेज और ज़ीरो इमिशन पूर्वक संपन्न की जाती है। यह उद्योग भारी संख्या में रोज़गार पैदा करने वाला तथा किसानों को सीधा लाभ पहुँचाने वाला जीवन्त मॉडल के रूप में प्रस्तुत हुआ है। गणेश वर्मा ने केंद्र और राज्य सरकारों तथा देश के बड़े उद्योगपतियों से बांस को बढ़ावा देने का आग्रह किया, विशेषकर छत्तीसगढ़ राज्य में, जहाँ बांस को निर्माण क्षेत्र में अब तक अपनाया नहीं गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य के अधिकतर किसान केवल धान के फ़सल की उत्पादन पर ही निर्भर हैं। धान की खेती में बहुत ही अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिसके कारण भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। अनेकों स्थानों पर पीने के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है। राज्य में जितनी चावल की आवश्यकता है, उससे अत्यधिक धान उत्पादन की वजह से सरकार पर ख़रीदी का दबाव और बहुत बड़ा आर्थिक बोझ की हमेशा समस्या बनी रहती है।
इन सभी समस्याओं का समाधान बांस की खेती से संभव है। वर्मा ने बताया कि उनकी कंपनी के उत्पादों को नेशनल ऑटोमोटिव टेस्ट ट्रैक्स (NATRAX), सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI), भारतीय रेलवे, भारतीय सड़क कांग्रेस (IRC), और अन्य सरकारी संस्थानों द्वारा मान्यता प्राप्त है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय इस पर्यावरण-अनुकूल और अभिनव समाधान को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। मंत्रालय देश के 25 राज्यों में सैकड़ों किलोमीटर की लंबाई में बांस क्रैश बैरियर्स लगाने की परीक्षण परियोजनाएं शुरू करने के लिए तैयार है, जिनका क्रियान्वयन अगले कुछ महीनों के भीतर किया जाएगा। MoRTH विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों से इन परियोजनाओं के लिए वास्तविक समय का डेटा और प्रदर्शन रिपोर्ट भी एकत्र कर चुका है। इसके आधार पर, बांस क्रैश बैरियर्स की व्यापक स्थापना की संभावनाओं का आकलन किया जाएगा, जो किसानों, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण वरदान हो सकता है। वर्तमान में, बांस के क्रैश बैरियर्स , बैम्बू टॉवर , सुरक्षा फ़ेंसिंग और अन्य उत्पादों की लागत स्टील के समकक्ष है। जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ेगी, इसके लिए सहयोगी ईकोसिस्टम विकसित होगी! तो भविष्य में इनकी लागत में काफी कमी की उम्मीद की जा रही है। स्टील की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी और खनन चुनौतियों के कारण, बांस एक स्थिर मूल्य विकल्प साबित हो सकता है। बड़े पैमाने पर उत्पादन में बांस स्टील की तुलना में किफायती साबित हो सकता है। बांस क्रैश बैरियर के अलावा, रेलवे और सड़क परिवहन मंत्रालय भी बांस आधारित बाड़ लगाने के उपायों को लागू करने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिससे अतिक्रमण और जानवरों की टक्कर से होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सके। बांस की खेती से किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिल रहा है और यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा कर रही है। इसके अलावा, बांस की खेती से पूरे ग्रामीण समुदायों का उत्थान हो रहा है, जिससे शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन की दर कम हो रही है। भारत के पास बांस क्रैश बैरियर के लिए पेटेंट है और यह पूरी तरह से भारतीय अनुसंधान और विकास की देन है। भविष्य में, भारत इस तकनीक का निर्यात करने और अन्य देशों में लाइसेंस प्रदान करने की योजना भी बना सकता है, खासकर दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों में। यह पहल टिकाऊ और नवाचार-आधारित समाधानों का उपयोग करके भारत के राजमार्गों पर सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।