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सैन समाज की सत्यता “*

विशेष लेख

(दुर्गा प्रसाद सेन) बेमेतरा छत्तीसगढ़

*सैन समाज की सत्यता “*

दैनिक मूक पत्रिका बेमेतरा – भारत में अलग-अलग धर्मों में अनेकों जातियां और उपजातियां है लेकिन हिंदू धर्म में प्रमुख रूप से सभी जातियों की सहयोगी रही है नाई जाति जिसे नापित, हज्जाम जैसे नामों से जाना जाता रहा है, लोगों में जागरूकता पैदा हुई तो कुछ प्रदेशों में ठाकुर तो कुछ क्षैत्रों में लोगों ने शर्मा लिखना और बताना,कहलवाना शुरू किया, हमारे पूर्वजों के इतिहास का ज्ञान हुआ तो सविता शब्द का इस्तेमाल होने लगा, भगवान धन्वंतरि जी के वंशज होने के नाते वैद्य कुल से उत्पत्ति हुई तो वैद्य लिखना शुरू हुआ, भक्त संत शिरोमणि की गाथा सुनने में आई और नाई शब्द से हीन भावना होने लगी तो सैन टाईटल का प्रसार प्रचार हुआ, शिक्षित और जागरूक समाज का उदय हुआ सम्राट महापद्मनंद के विषय में ज्ञान मिला तो स्वयं को नंदवंश बताया जाने लगा, कुछ लोग गोलमाल पहचान रखने के कारण खुद को वर्मा लिखने लगे ताकि सर्व समाज में स्वयं को सुनार बता सकें आदि आदि अनेकों नाम उपनाम या पहचान रही हो यह इतना बड़ा विषय नहीं है, विषय है कि आत्म सम्मान की सदैव से तलबगार रही इस ज्ञानी और मेहनती क़ौम को सम्मान क्यूं नहीं मिला, रिश्ते परखने में हुनरमंद,शादी विवाह करने में निपुण,केश काटने, संवारने अर्थात केशकला में महारत रखने वाले, मरहम-पट्टी, मालिश में निपुण, औषधियों के पहचान में माहिर, पुराने सर्जन, अपनी आस्था के कारण भगवान कृष्ण से अपना पुस्तैनी कार्य करा लेने वाले भीष्म पितामह के अवतार कहें जाने वाले सैन भक्त के वंशज होते हुए भी आज तक पीछे क्यूं है?
राजनैतिक भागीदारी के नाम पर बिल्कुल शून्य है,ऐसा क्यूं है ? देशभर के विद्वानों से विनम्र निवेदन करता हूं कि आप इस प्रशन का उत्तर समूचे सैन समाज को बताइए,हम ना कम है और ना ही कमजोर फ़िर भी उचित सम्मान में पीछे क्यूं है? जब तक आपकी जाति का पता नहीं लगता अन्य समाज के आपके परिचित आपको उचित सम्मान देते हैं और जब पता चल जाता है कि आप अमूक जाति से है तो उनके मुंह ऐसे कसैला हो जाता है जैसे एक मुट्ठी नमक डाल दिया हो, आखिर ऐसा क्यूं है, यही कारण है कि आजकल इस जाति के अधिकांश लोगों ने अपने टाईटल सिंह, कुमार,पाल आदि लिखना शुरू कर दिया है और बहुत से लोग तो जाति प्रमाण पत्र तक नहीं बनवाते,ना ही कोई इस जाति को मिली जाति आरक्षण के नाम पर छोटी सी छूट का लाभ लेते हैं। अजीब कशमकश है। इसके पुस्तैनी काम को अब अन्य छोटी बड़ी जातियों ने करना शुरू कर दिया है इसलिए इनका पुस्तैनी कार्य भी इनसे छुटता जा रहा है। इस जाति की ना तो जाट रेजीमेंट, राजपूत रेजीमेंट और गोरखा रेजीमेंट की तरह कोई सैना में विशेष बटालियन है और नाही किसी भी राजनैतिक दल में एंट्री है,बस नेताओं की चापलूसी करके उनके चाटुकार बने रहोंं जब टिकट वितरण की बात आती है या राज्य सभा एंट्री की बात आती है तो सभी राजनैतिक दलों को सांप सूंघ जाता है। कब तक इन लोगों के हाथों का खिलौना बना रहोगे, उठो और अपने हक के लिए आगे बढ़ो, अपनी राजनीतिक भागीदारी प्रदर्शित करों, बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने कहा था राजनैतिक हिस्सेदारी छिनने से मिलती है,मांगने से नहीं । आओं अपनी शक्ति को पहचानों आप नाई नहीं न्यायी थे सम्राट महापद्मनंद, चंद्र गुप्त आदि की तरह न्याय करने वाले बनों, यौद्धा बन कर राजनैतिक मैदान में उतरों,सक्षम साथियों को आगे करके उनकी मदद कीजिए और आपस में ईर्ष्या मिटाकर समाज उत्थान हेतु एकजुट हो जाइए। अपने साथी के चुनाव प्रचार के लिए अपने समाज के साथियों को इकट्ठा करके दूर दराज भी जाना पड़े तो जाइए। एकता में बहुत बल है।

” *लेख* ”

**दुर्गा प्रसाद सेन*
*समाज सेवक*
*बेमेतरा छत्तीसगढ़** *9977823003*

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