दैनिक मूक पत्रिका रायपुर – भारत के खाद्य तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह भारी गिरावट देखी गई। नवंबर 2024 में खाद्य तेलों के आयात में 39% की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि घरेलू मांग कमजोर रही। इसके चलते प्रमुख तेल-तिलहन जैसे सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, कच्चा पामतेल, पामोलीन और चिनौला तेल के दामों में भारी कमी आई।
आयात में 39% की बढ़ोतरी
खाद्य तेलों का आयात नवंबर 2024 में 39% बढ़कर 17.12 लाख टन हो गया, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 12.31 लाख टन था। आयात में यह बढ़ोतरी भारत के घरेलू तेल उत्पादन की तुलना में अधिक आपूर्ति होने के कारण हुई, जिससे बाजार में कीमतें टूटने लगीं। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे पाम तेल और अन्य तेलों के दामों में भी गिरावट आई, जिसने भारतीय बाजार पर असर डाला।
मांग में कमजोरी
देश में खाद्य तेलों की मांग भी कमजोर रही। विशेषज्ञों के अनुसार, महंगाई के कारण उपभोक्ता खर्च में कटौती कर रहे हैं, जिससे त्योहारी सीजन के बाद भी तेलों की खपत में अपेक्षित सुधार नहीं हो पाया। साथ ही, शादी-ब्याह के सीजन में भी कम मांग देखी जा रही है, जिससे बाजार में खरीदारी की गति धीमी हो गई।
प्रमुख तेल-तिलहनों के दामों में गिरावट
- सरसों तेल: सरसों के तेल और तिलहन के दाम में प्रति क्विंटल लगभग ₹200 की गिरावट आई। आयातित तेलों की अधिकता और कम मांग ने सरसों की कीमतों पर दबाव बनाया।
- सोयाबीन तेल: सोयाबीन तेल-तिलहन के दामों में भी भारी गिरावट दर्ज की गई। प्रति क्विंटल ₹150-₹250 की कमी आई। सोयाबीन तिलहन के दामों में भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट का असर दिखाई दिया।
- मूंगफली तेल: मूंगफली तेल के दामों में ₹100-₹150 प्रति क्विंटल की गिरावट आई। इसका प्रमुख कारण घरेलू उत्पादन और आपूर्ति की अधिकता के साथ-साथ मांग में कमी है।
- कच्चा पामतेल एवं पामोलीन तेल: कच्चे पामतेल और पामोलीन तेल के दाम क्रमशः ₹50-₹100 प्रति क्विंटल तक गिर गए। यह गिरावट आयात की अत्यधिक मात्रा और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में कमी के कारण हुई।
बाजार विशेषज्ञों की राय
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आयात में इसी तरह की तेजी बनी रही और घरेलू मांग में सुधार नहीं हुआ, तो तेल-तिलहन के दामों में और भी गिरावट देखने को मिल सकती है। वहीं, सरकार द्वारा आयात नीति में बदलाव या मांग बढ़ाने के प्रयास से कीमतों में स्थिरता आ सकती है।
खाद्य तेलों के आयात का पिछले 5 वर्षों का विश्लेषण (लाख टन में)
वर्ष |
खाद्य तेलों का आयात |
2019 |
13.5 |
2020 |
11.8 |
2021 |
14.2 |
2022 |
12.9 |
2023 |
15.4 |
2024 |
17.12 |
निष्कर्ष
तेल-तिलहन बाजार की मौजूदा स्थिति आयात और मांग में असंतुलन के कारण उत्पन्न हुई है। उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों का लाभ मिल रहा है, लेकिन किसानों और तेल-तिलहन उद्योग के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है। सरकार और व्यापारिक संगठन इस गिरावट को कैसे संभालते हैं, यह आगामी हफ्तों में देखने लायक होगा।