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शास.वि. या.ता.स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग के हिन्दी एवं संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वाधान में सात दिवसीय कार्यशाला का हुआ उद्घाटन…!

कार्यशाला का उद्देश्य छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति नाचा को संरक्षित करना एवं विद्यार्थियों में छुपे हुए कला को निखारना है- डॉ अभिनेष सुराना

दुर्ग – शास.वि. या.ता.स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग के हिन्दी एवं संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वाधान में छत्तीसगढ़ी नाचा लोकनाट्य एवं नाटक सात दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन किया गया। यह कार्यशाला दिनांक 24 जनवरी से 31 जनवरी तक आयोजित होगी जिसमें दुर्ग एवं भिलाई के विद्यालय तथा महाविद्यालय के विद्यार्थी एवं प्राध्यापक सम्मिलित हो सकते हैं । उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त वरिष्ठ कलाकार भिलाई इस्पात संयंत्र शक्तिपद चक्रवर्ती थे तथा अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अजय कुमार सिंह ने की । कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ी एवं भोजपुरी फिल्म कलाकार तथा राग अनुराग के संस्थापक निर्देशक हेमलाल कौशल , प्रसिद्ध रंगकर्मी राकेश बम्बार्डे , प्रसिद्ध रंगकर्मी तथा नाट्य निर्देशक हरजिंदर सिंह मोहबिया तथा नाचा कलाकार निर्देशक संत समाज नाच पार्टी अजय उमरे थे।

हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अभिनेष सुराना ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति नाचा को संरक्षित करना एवं विद्यार्थियों में छुपे हुए कला को निखारना है। मुख्य अतिथि शक्तिपाद चक्रवर्ती जी ने कहा कि कलाकार को जमीन से जोड़ना नाटक करते रहना बहुत पसंद होता है और आज हम सब रंगकर्मी इसी कार्य को पूर्ण करने आए हैं टेलीविजन में संवाद टेक्निकल हो गया है लेकिन नाच या नाटक में संवाद अभी भी प्राकृतिक रूप में रहता है संवाद का स्पष्ट रूप से दर्शक तक पहुंचना बहुत महत्वपूर्ण होता है। नाटकों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को लोगों तक प्रेषित कर किया जाता है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में आमन्त्रित अजय कुमार उमरे नाचा कलाकार एवं निर्देशक संत समाज नाच पार्टी ने अपने उद्बोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य की आत्मा नाचा है । नाचा के प्रारंभिक स्वरूप कैसा था ? और आज के नाचा का स्वरूप कैसा है ? इस विषय पर विस्तार से विद्यार्थियों को बताया ।आज इलेक्ट्रॉनिक साधन के आ जाने से नाचा में बदलाव आया है।नाचा बिना स्क्रिप्ट का होता है। इसमें पात्र हाजिर जवाबी होते हैं । पुरुष पात्र ही स्त्री पात्र का अभिनय करते हैं और लोगों को अपने संवादों से बांधे रखते हैं। रंगकर्मी राकेश बम्बार्डे ने कहा कि नाटक दृश्य और श्रव्य दोनों होते हैं । नाटक का मंचन थोड़ा कठिन होता है । हरजिंदर सिंह महोबिया ने नाटक के विषय में कहा कि नाटक प्रयोगिक होता है । नाटक के प्रस्तुतीकरण की प्रक्रिया एक जटिल विधा होती है किसी प्ले को तैयार करने में बहुत समय लगता है। हेमलाल कौशल ने कहा कि नाचा और लोकनाट्य दोनों बहन के समान हैं नाचा का विषय समाज से जुड़ा होता है ।समाज की बुराइयां कुरीतियों कमियों को हास्य व्यंग के माध्यम से उजागर करना नाच का उद्देश्य होता है ।हिंदी नाटक के प्रभाव से आज नाचा का स्वरूप बदल गया बदल गया है । नाचा बिना स्क्रिप्ट का होता है । नाचा में नैसर्गिक रूप से संवाद फूटते हैं । उक्त कार्यक्रम में अंग्रेजी विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ मर्सी चार्ज ,प्रो. मीना मान, प्रो. तरलोचन कौर ,प्रो. निगार अहमद, अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. के पद्मावती , हिंदी विभाग के अतिथि प्राध्यापक डॉ.ओमकुमारी देवांगन , डॉ .रमणी चंद्राकर डॉ. लता गोस्वामी एवं शोधार्थी एवं महाविद्यालय तथा अन्य महाविद्यालय से आए हुए विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहें । कार्यक्रम का संचालन डॉ.रजनीश उमरे ने तथा आभार प्रदर्शन प्रो. जनेंद्र कुमार दीवान ने किया।

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