प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय बेमेतरा में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व झांकी सजाकर श्रीकृष्ण के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर धूमधाम से मनाया गया
mookpatrika.live
दैनिक मूक पत्रिका बेमेतरा-प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व में झांकी सजाकर श्रीकृष्ण कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि बेमेतरा जनपद पंचायत अध्यक्ष बहन रीना वर्मा जी, विशिष्ट अतिथि दन्त चिकित्सक डॉ. प्रदीप तिवारी जी, राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त सेवानिवृत शिक्षक साहित्यकार, कलाकार डॉ. गोकुल बंजारे चन्दन जी, अध्यक्षता ब्रह्माकुमारीज बेमेतरा सेवा केंद्र प्रभारी बी के शशि दीदी जी एवं अन्य अतिथियों ने संयुक्त रूप से किया इस अवसर पर बी के शशि दीदी जी ने कहा कि हर वर्ष भारत में जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
हरेक माता अपने बच्चे को नयनों का तारा और दिल का दुलारा समझती है, परन्तु फिर भी वह श्रीकृष्ण को सुंदर, मनमोहन, चित्तचोर आदि नामों से पुकारती है। वास्तव में श्री कृष्ण का सौंदर्य चित्त को चुरा ही लेता है। जन्माष्टमी के दिन जिस बच्चे को मोर मुकुट पहनाकर, मुरली हाथ में देते हैं, लोगों का मन उस समय उस बच्चे के नाम, रूप, देश व काल को भूल कर कुछ क्षणों के लिए श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित हो जाता है।
सुंदरता तो आज भी बहुत लोगों में पाई जाती है परंतु श्रीकृष्ण सर्वांग सुंदर थे, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण थे। ऐसे अनुपम सौंदर्य तथा गुणों के कारण ही श्रीकृष्ण की पत्थर की मूर्ति भी चित्तचोर बन जाती है। इस कलियुगी सृष्टि में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसकी वृत्ति, दृष्टि कलुषित न बनी हो, जिसके मन पर क्रोध का भूत सवार न हुआ हो अथवा जिसके चित्त पर मोह, अहंकार का धब्बा न लगा हो। परन्तु श्रीकृष्ण जी ही ऐसे थे जिनकी दृष्टि, वृत्ति कलुषित नहीं हुई, जिनके मन पर कभी क्रोध का प्रहार नहीं हुआ, कभी लोभ का दाग नहीं लगा। वे नष्टोमोहा, निरहंकारी तथा मर्यादा पुरूषोत्तम थे। उनको सम्पूर्ण निर्विकारी कहने से ही सिद्ध है कि उनमें किसी प्रकार का रिंचक मात्र भी विकार नहीं था। जिस तन की मूर्ति सजा कर मंदिर में रखी जाती है, उसका मन भी तो मंदिर के समान था। श्रीकृष्ण केवल तन से ही देवता नहीं थे, उनके मन में भी देवत्व था। जिस श्रीकृष्ण के चित्र को देखते ही नयन शीतल हो जाते हैं, जिसकी मूर्ति के चरणों पर जल डाल कर लोग चरणामृत पीते हैं और उससे ही अपने को धन्य मानते हैं, यदि वे वास्तविक साकार रूप में आ जाएँ तो कितना सुखमय, आनंदमय, सुहावना समय हो जाए। बच्चों ने राधा कृष्ण संग रास की शानदार प्रस्तुति दी, अतिथियों ने बच्चों को पुरस्कार भेंट किए। सेवा केंद्र में आए श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण और श्री राधिका रानी को झूला झुलाया और अपने जीवन को श्री कृष्ण और श्री राधे के जैसा पुनित गुण धारण करने की प्रतिज्ञा की।